हज़रत शाह तैय्यब बनारसी
आपके वक्त में बनारस के मुसलमानों में गुमराहियत बहुत ज्यादा फैल चुकी थी। लोग निकाह के वक्त सुन्नत तरीकों को छोड़कर सिरकिया और कुफरिया काम करते थे। शादी के वक्त लोग नाच-गाना ज़रूरी समझते थे। किसी मुसलमान के घर पैदाइश होती तो वे अजीब-अजीब खुराफात और बिदअत वाले काम करते। किसी के यहां किसी का इंतकाल हो जाता तो 40 दिन लोगमुर्दे के घर पर रुके रहते और जमीन पर सोते।
बिसवान और चालीसवान पर बड़ी-बड़ी दावतें करते और पूरी बिरादरी के लोगों की दावत करते। शाह तैय्यब बनारसी रहमतुल्लाह अलैह ने इन सब बदतरिन रसूमात और इन बुरी बिदअत से बनारस की सरज़मीन को पाक-ओ-साफ किया। आपका विसाल हिजरी 1042 के मुताबिक सन 1632 को झूंसी में हुआ। आपके मुरिदीन आपकी लाश मुबारक को लेकर बनारस के मांडुवाडीह आए और यहीं दफन किया। आपकी दरगाह बनारस के मांडुवाडीह इलाके में मौजूद है।हर साल 7 सव्वाल को आपका उर्स मनाया जाता है। लोग जादू-टोना और मानसिक बीमारी से निजात हासिल करने के लिए आपके आस्ताने पर आते हैं और फैज़ हासिल करते हैं।


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ReplyDeleteMashaAllah
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