मौलाना रसूल नुमा बनारसी
मौलाना रसूल नुमा के बारे में जानकारी:
आपके वालिद गाजीपुर के क़स्बा नौ नहरा के रहने वाले थे। शहंशाह औरंगज़ेब ने आपके वालिद क़ाज़ी सय्यद इनायतुल्लाह को बनारस का क़ाज़ी बनाया था। मौलाना रसूल नुमा बनारसी हिजरी 1087 में बनारस में ही पैदा हुए। पैदाइश के वक्त किसी नजूमी (ज्योतिषी) ने खबर दी थी कि यह बच्चा अपने वक्त का गौस-ए-आज़म होगा। आपकी उम्र अभी 7 साल की ही थी, उसी वक्त से इश्क-ए-रसूल जाहिर हुआ। आपके मदरसे के साथी, जो आपकी ही उम्र के थे, इश्किया शायरी पढ़ते थे तो आप फरमाते थे कि "हमारा महबूब तो बस रसूल-ए-खुदा के इलावा कोई नहीं है।" इसी उम्र में आप हर रोज़ नमाज़-ए-अस्र के बाद अकेले एक कमरे में बैठ जाते और दरवाजा बंद कर लेते।और तन्हाई में बैठकर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में इश्क और मोहब्बत के असआर रो-रो कर पेश करते और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीदार का इज़हार करते। लगातार 2 साल तक आप ऐसा करते रहे। फिर एक दिन आका करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ब-नफ्से नफीस आपके पास तशरीफ लाए। आपने जागते हुए अपने सर की आँखों से उस हुस्न-ए-बे-मिसाल की ज़ियारत की। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आपको तसल्ली देते हुए इरशाद फ़रमाया, "ग़म ना करो," और तसल्ली की कुछ और बातें भी इरशाद फ़रमाईं। जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वापस जाने लगे तो आपने कहा "या रसूल अल्लाह, आपका दीदार फिर कैसे होगा?" हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, "घबराओ नहीं, मैं हर रोज़ तुमसे मिला करूँगा।" इसके बाद हर रोज़ हुज़ूर पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आपके पास आते और आप हर रोज़ जमाल-ए-मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दीदार करते
यह आपके बचपन का वाक़या है जब आपका हाल किसी पर खुला नहीं था। एक दिन आपके उस्ताद ने कहा, "हुक्का भर कर लाओ।" आपने चिलम को सही किया और हुक्का तैयार करने के लिए दालान में गए। हुक्का शीशे का था। हथेली पर रखकर पानी का अंदाज़ा करने लगे। ख़ुदा के इस नेक बंदे ने न जाने क्या देखा कि महवियत का आलम तारी हो गया। वापस आने में देर हो गई। तो उस्ताद ने एक दूसरे साथी को भेजा कि "जाओ देखो, हुक्का टूटा तो नहीं, इतनी देर क्यों हो रही है?" वह साथी आकर देखता है कि हुक्का हथेली पर रखा है और आप नज़र गड़ाए हुए दूसरी दुनिया में खोए हुए हैं और आपके सिर से आसमान तक नूर का स्तम्भ रौशन है। उसे बहुत ताज्जुब हुआ और उस्ताद को जाकर पूरा वाक़या बताया। उस्ताद तलबा के साथ उठे और सभी लोगों ने आकर यह हाल देखा। उस्ताद भी अल्लाह के नेक बंदों में से थे, इस हकीकत को समझ गए और देर तक खड़े होकर आपको देखते रहे।फिर जब हज़रत मौलाना की हालत में सुधार हुआ तो आपने जल्दी से हुक्का को सही करके उस्ताद के सामने रखा। आपको देखकर उस्ताद खड़े हो गए और बोले, "हज़रत, माफ़ फ़रमाइएगा, आपसे ऐसा काम कराना सही नहीं है।" आप सहमे कि देर होने की वजह से उस्ताद नाखुश हैं, फ़ौरन ही माफ़ी माँगने लगे। उस्ताद ने कहा, "माफ़ी माँगने की कोई बात नहीं, आज मैंने तुम्हारी हक़ीक़त पहचान ली।" उसी वक्त से उस्ताद की नज़र में आपकी इज़्ज़त बहुत बढ़ गई।2 साल की अवधि में आपने इल्म-ए-फिकह, उसूल-ए-फिकह, तफ़सीर, हदीस, मंतिक, हिकमत और फ़लसफ़ा में ज्ञान प्राप्त कर लिया। पढ़ाई के ज़माने में आप पर हाल का इतना ग़ल्बा रहता कि सबक का निशान तक याद न रहता। खादिम किताब साथ ले जाता और निशान बताता, आप सबक शुरू कर देते और सबक खुद-ब-खुद हल हो जाता।
यह आपके बचपन का वाक़या है जब आपका हाल किसी पर खुला नहीं था। एक दिन आपके उस्ताद ने कहा, "हुक्का भर कर लाओ।" आपने चिलम को सही किया और हुक्का तैयार करने के लिए दालान में गए। हुक्का शीशे का था। हथेली पर रखकर पानी का अंदाज़ा करने लगे। ख़ुदा के इस नेक बंदे ने न जाने क्या देखा कि महवियत का आलम तारी हो गया। वापस आने में देर हो गई। तो उस्ताद ने एक दूसरे साथी को भेजा कि "जाओ देखो, हुक्का टूटा तो नहीं, इतनी देर क्यों हो रही है?" वह साथी आकर देखता है कि हुक्का हथेली पर रखा है और आप नज़र गड़ाए हुए दूसरी दुनिया में खोए हुए हैं और आपके सिर से आसमान तक नूर का स्तम्भ रौशन है। उसे बहुत ताज्जुब हुआ और उस्ताद को जाकर पूरा वाक़या बताया। उस्ताद तलबा के साथ उठे और सभी लोगों ने आकर यह हाल देखा। उस्ताद भी अल्लाह के नेक बंदों में से थे, इस हकीकत को समझ गए और देर तक खड़े होकर आपको देखते रहे।फिर जब हज़रत मौलाना की हालत में सुधार हुआ तो आपने जल्दी से हुक्का को सही करके उस्ताद के सामने रखा। आपको देखकर उस्ताद खड़े हो गए और बोले, "हज़रत, माफ़ फ़रमाइएगा, आपसे ऐसा काम कराना सही नहीं है।" आप सहमे कि देर होने की वजह से उस्ताद नाखुश हैं, फ़ौरन ही माफ़ी माँगने लगे। उस्ताद ने कहा, "माफ़ी माँगने की कोई बात नहीं, आज मैंने तुम्हारी हक़ीक़त पहचान ली।" उसी वक्त से उस्ताद की नज़र में आपकी इज़्ज़त बहुत बढ़ गई।2 साल की अवधि में आपने इल्म-ए-फिकह, उसूल-ए-फिकह, तफ़सीर, हदीस, मंतिक, हिकमत और फ़लसफ़ा में ज्ञान प्राप्त कर लिया। पढ़ाई के ज़माने में आप पर हाल का इतना ग़ल्बा रहता कि सबक का निशान तक याद न रहता। खादिम किताब साथ ले जाता और निशान बताता, आप सबक शुरू कर देते और सबक खुद-ब-खुद हल हो जाता।
जब हज़रत रसूल नुमा बनारसी 12 बरस के हुए तो हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन्हें हुक्म दिया कि तुम सय्यद रफ़ीउद्दीन क़ादरी से मुरीद हो जाओ। हज़रत रसूल नुमा ने कहा, "हुज़ूर, आप ही मुझे बैत कर लें, मैं किसी और से बैत होना नहीं चाहता।" इस बात पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें बैत किया, लेकिन साथ में यह भी फ़रमाया कि "सय्यद रफ़ीउद्दीन क़ादरी से भी बैत हो जाओ, क्योंकि इज्राए सिलसिला के लिए ज़ाहिरी बैत भी ज़रूरी है।" चुनांचे आप अपने दादा सय्यद रफ़ीउद्दीन क़ादरी के सिलसिला-ए-क़ादरिया में मुरीद हुए। आपने क़ुरआन मजीद की तफ़सीर भी लिखी थी और सरह वाक़या का हाशिया भी लिखा था।
आपकी आदत यह थी कि पैर कभी न फैलाते, सोते भी तो अपना पैर समेट कर सोते। आपकी दाहिनी हथेली पर बारीक़ जिल्द के नीचे सब्ज़ लकीरों से "मोहम्मद" लिखा हुआ था, जिसे हर शख़्स आसानी के साथ पढ़ लेता था। आपकी यह करामत भी थी कि आपके बदन से मुश्क की ख़ुशबू आती थी, मुराक़बे के वक्त खास तौर पर ऐसा होता था। यह ख़ुशबू सबको महसूस होती थी, ख़ुफ्फार (काफिर) भी इस ख़ुशबू को महसूस कर लेते थे। जिस पर आप अपना हाथ रख देते, उसके बदन से भी ख़ुशबू आने लगती थी।
आपकी आदत यह थी कि पैर कभी न फैलाते, सोते भी तो अपना पैर समेट कर सोते। आपकी दाहिनी हथेली पर बारीक़ जिल्द के नीचे सब्ज़ लकीरों से "मोहम्मद" लिखा हुआ था, जिसे हर शख़्स आसानी के साथ पढ़ लेता था। आपकी यह करामत भी थी कि आपके बदन से मुश्क की ख़ुशबू आती थी, मुराक़बे के वक्त खास तौर पर ऐसा होता था। यह ख़ुशबू सबको महसूस होती थी, ख़ुफ्फार (काफिर) भी इस ख़ुशबू को महसूस कर लेते थे। जिस पर आप अपना हाथ रख देते, उसके बदन से भी ख़ुशबू आने लगती थी।
आपका ख़िताब "रसूल नुमा" मशहूर है क्योंकि आप रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत कराया भी करते थे।
11 रबीउस्सानी हिजरी 1166 को आपका विसाल हुआ। आपके विसाल के बाद बनारस के एक बुजुर्ग को लोगों ने देखा कि वे बहुत बेचैन होकर जमीन को दोनों हाथों से पकड़े हुए थे और फरमा रहे थे कि "जमीन को सख्त ज़लज़ला है।" कुछ देर तक उनका यही हाल रहा, फिर कुछ देर के बाद "अल्हम्दुलिल्लाह, अल्हम्दुलिल्लाह" कहा। लोगों ने वजह पूछी तो उन्होंने फरमाया कि "ज़माने का क़ुतुब दुनिया से उठ गया, जिससे दुनिया तबाह और बर्बाद हो रही थी। जब उसका क़याम मुकाम मुन्तखब हुआ तो जमीन को सुकून हुआ।"
स्थान:
आपका मजार शहर बनारस के मुहल्ला कोयला बाज़ार में मौलवी जी के बाड़े में है, जो आप ही के नाम से मशहूर है।
स्थान:
आपका मजार शहर बनारस के मुहल्ला कोयला बाज़ार में मौलवी जी के बाड़े में है, जो आप ही के नाम से मशहूर है।
उर्स:
हर साल 13,14,15 रबीउस्सानी को बड़े पैमाने पर उर्स का आयोजन होता है। इस दरगाह के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें।
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MasaAllah
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