हज़रत मलिक अफज़ल अलवी रहमतुल्लाह अलैह (ग़ाज़ी मिन्या)
दोस्तों, आज हम आपको बनारस की 900 साल पुरानी दरगाह के बारे में बताने जा रहे हैं, जो हज़रत मलिक अफज़ल अलवी रहमतुल्लाह अलैह की है। इन्हें ग़ाज़ी मिन्या के नाम से भी जाना जाता है। हज़रत मलिक अफज़ल अलवी रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह का बनारस में महत्वपूर्ण स्थान है
पांचवीं सदी की शुरुआत में, सन 1029 में, सय्यद सालार मसूद ग़ाज़ी रहमतुल्लाह अलैह, जिनकी मजार बहराइच में है, ने बनारस में एक तबलीगी काफिला भेजा। इस काफिले का नेतृत्व हज़रत मलिक अफज़ल अलवी रहमतुल्लाह अलैह को सौंपा गया। इस काफिले को बनारस भेजने का मुख्य उद्देश्य इस्लाम का प्रचार और इस्लाम के पैगाम को लोगों तक पहुंचाना था, क्योंकि उस समय बनारस में इस्लाम का कोई नामोनिशान नहीं था और हर तरफ कुफ्र और शिर्क की आवाजें बुलंद हो रही थीं। यह सय्यद सालार मसूद ग़ाज़ी का ही फ़ैज़ था कि उन्होंने मलिक अफज़ल अलवी को बनारस के इलाके की खिदमत का काम देकर वहां भेजा।
बनारस आने के बाद, हज़रत मलिक अफज़ल अलवी रहमतुल्लाह अलैह और उनके साथियों की राजा बनार से युद्ध हुआ। इस युद्ध में उनके कई साथी शहीद हो गए। बनारस के इलाके सैलर पुरा में ठहरने के बाद, इस इलाके का नाम अलवी पुरा पड़ा, जो आज भी उनके नाम से जाना जाता है। वर्तमान में, अलवी पुरा में जो आबादी है, वह हज़रत मलिक अफज़ल अलवी की नस्ल से ही है। बनारस में बुनकरी और साड़ी बुनने वालों की बड़ी आबादी का ताल्लुक भी उनकी नस्ल से है, क्योंकि उनकी नस्ल से जो लोग बनारस में बस गए थे, उन्होंने रोज़ी-रोटी के लिए रेशम के कपड़े बुनने का काम शुरू किया, जो आज भी चल रहा है। अपनी ईमानदारी के कारण ये लोग मोमिन और नूर बफ कहलाए।
दोस्तों, यह दरगाह बनारस के अलवी पुरा इलाके में स्थित है, जहां हमेशा अकीदतमंद हाज़िरी देते हैं। हर साल जब बहराइच में ग़ाज़ी मिन्या का मेला होता है, तो उसी दिन यहां भी ग़ाज़ी मिन्या के मेला के नाम पर बहुत बड़ा मेला आयोजित किया जाता है।
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दोस्तों, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में दुआ है कि मौला तबारक वा ताला अपने हबीब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदके और हज़रत मलिक अफज़ल अलवी और तमाम औलिया अल्लाह के वसीले से हम सबकी तमाम दिली नेक तमन्ना और जायज़ अरज़ू को क़ुबूल फरमाएं। आमीन।

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SubhanAllah
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ReplyDelete5 good information
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