चंदन शहीद दरगाह, वाराणसी
चंदन शहीद दरगाह वाराणसी में स्थित एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।यह दरगाह गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक मानी जाती है,जहां हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लोग श्रद्धा और आस्था के साथ आते हैं।
इतिहास:
आपका नाम सैयद मीर हुसैन है और आप उर्फ आम मेंचंदन शहीद के नाम से जाने जाते हैं।आप सैयद हैं और सैयदना इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की औलाद में से हैं।आप मदीना शरीफ के रहने वाले थे। मदीना शरीफ से 1186 में भारत आएऔर भारत आकर सबसे पहले अजमेर शरीफ में ठहरे।और 5 साल तक अजमेर शरीफ में ठहरे रहे।1191 के बाद सुल्तान शहाबुद्दीन गौरी के जनरल बख्तियार खिलजीकी लश्कर के साथ आप सासाराम आए और सासाराम में सुकूनत इख्तियार की।
वाराणसी आगमन और शहादत:
इसके बाद आप इस्लाम की तबलीग के लिए बनारस आए और बनारस में दुश्मनाने इस्लाम के साथ आपकी जंग हुई। जंग के दौरान एक ऐसा वार आप पर हुआ कि आपका सर धड़से अलग हो गया। शहादत से पहले ही आपने अपने साथियों को वसीयत कर दी थी कि शहादत के बाद मेरा सर यहीं बनारस में दफन कर देना और मेरे धड़ को ले जाकर सासाराम में मसरिकी पहाड़ पर जो सबसे ऊंची जगह है, जहां मेरे और भी साथी दफन हैं,
वहीं पर मुझे भी दफन कर देना।शहादत के बाद आपके साथियों ने आपका सर वाराणसी राजघाट के पास दफन कर दिया और आपकी धड़ को आपकी वसीयत के मुताबिक सासाराम में दफन कर दिया।
आपका मजार वाराणसी में राजघाट इलाके में मौजूद है।
हर साल 16 शाबान को बनारस और सासाराम दोनों जगहों पर उर्स होता है।आपका मजार गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए भी जाना जाता है।आपकी मजार पर बीमार, जिन पर काला जादू होता है या जिन परऊपरी हवा का असर होता है, ऐसे लोग आते हैं और शिफायाब होकर जाते हैं।
उर्स:
हर साल 16 शाबान को बनारस और सासाराम दोनों जगहों पर उर्स होता है।आपका मजार गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए भी जाना जाता है।आपकी मजार पर बीमार, जिन पर काला जादू होता है या जिन परऊपरी हवा का असर होता है, ऐसे लोग आते हैं और शिफायाब होकर जाते हैं।
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